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पूरानी मुस्कान

Writer's picture: Shayar MalangShayar Malang

उस बस्ते में मिल ही गई

मुझे मेरी पूरानी मुस्कान..

जैसी ही देखा मैंने

उसमें पड़ा हुआ सामान

वो रफ़ कॉपी जो सही मायने में सही थी

और वो स्पेशल जो थी

वो तो अकेले ही पड़ीं थी

समझ आया

रफ सबसे जरूरी होती है

स्पेशल तो बस जरूरत होती है...


मलंग उसमें वो फटे काग़ज़ भी थे

जिनको उड़ना था या तैरना था

या तितली बनना था

या वो मैंढक

या फिर चिड़िया

और ना जाने क्या क्या...


ऊपर की पॉकेट में

एक जादू का डिब्बा था

जो था तो छोटा

मगर उसका दिल बड़ा था

वो सब में बटता था

थोड़ा थोड़ा टुकड़ा टुकड़ा

चम्मच चम्मच

ख़ुशियों की तरह

और वो जो उसका स्वाद था ना

मलंग वो अस्सी पकवानों से भी

ज़्यादा था

क्योंकि थोड़ा थोड़ा मगर ज्यादा था

जानते हो क्यों

क्योंकि वो स्पेशल नहीं था

वो सबके लिए बनता

और सबके संग खुलता था


आज सब अकेले हैं

क्योंकि क्या करें स्पेशल जो बनना है

ना कोई भाई ना कोई ब्रो ना कोई अन्ना है

बस अकेले ही कुछ करना है

क्योंकि स्पेशल जो बनना है

यारों स्पेशल बन के क्या करना है


वो बस्ता

वो कच्चा रस्ता

वो कागज की बॉल

रोटी के रोल

वो बेमतलब की हंसी

छोटी छोटी बातों की ख़ुशी

वो ही तो जरुरी है

यारों के साथ कभी नहीं होती थी थकान

उस बस्ते में मिल ही गई

मुझे मेरी पूरानी मुस्कान..!!

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Shayar Malang

मस्त हूँ ... मलंग हूँ ... फक्कड भी ..,

ईश्किया हूँ ... दिवाना हूँ ... घुमक्कड़ भी ...

मेरे शब्द सिर्फ शब्द भर नहीं हैं ..!!

These Are Not Only Words . . .     These Are Feelings . . .

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