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कुछ ख़्वाब रफ़ू करने हैं

ए ज़िंदगी

कुछ ख़्वाब रफ़ू करने हैं

कतरन कतरन

बचाया है जिन हिस्सों को

उन सबके किस्से गढ़ने हैं

ए ज़िंदगी....


यादों के टोकरे से

कुछ रंग अैसे निकलें जो

सिल के ढल जाएं

उन्हीं सुनहरे रंगो में

बस एक

कारीगर अैसा मिल जाए

उसे ढूंढने निकले हैं

ए ज़िंदगी....


फटे हुए ख़्वाबों को

एक दर्ज़ी ढूँढने निकले हैं

ए ज़िंदगी....


कुछ ख़ुद के हैं

कुछ खुदी से हैं

वो अहसास बड़े ही

अपने हैं

वो मस्त शोख हसीनों के

ख़ूबसूरत चेहरे सपने हैं

हम वही सपने ढूँढने निकले हैं

ए ज़िंदगी....


कुछ जीना है

कुछ मरना है

कुछ रह रह कर हमें

डरना है

कोई क्या सोचेगा

कोई कहेगा क्या

इस ज़िंदगी के बड़े ही लफड़े हैं

हम कुछ सुलझने निकले हैं

हम कुछ उलझने निकले हैं

ए ज़िंदगी

कुछ ख़्वाब रफ़ू करने हैं.!

ए ज़िंदगी

कुछ ख़्वाब रफ़ू करने हैं.!!


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Shayar Malang

मस्त हूँ ... मलंग हूँ ... फक्कड भी ..,

ईश्किया हूँ ... दिवाना हूँ ... घुमक्कड़ भी ...

मेरे शब्द सिर्फ शब्द भर नहीं हैं ..!!

These Are Not Only Words . . .     These Are Feelings . . .

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