जाने कितने
सपने
ठहरे हुए हैं
इन आँखों में
जाने कितने
अहसासों को
दफना दिया
अपनी आहों में
जाने कितने
अफसाने हैं
मेरी उलझी साँसों में
जाने कितनी
उम्मीदें हैं
टूटे हुए इरादों में
जाने कितने
ख़्वाब बहे हैं
मेरी सिसकती बातों में
जाने कितनी
ख्वाहिशें डूबी
काली गहरी रातों में.,
मैं
ज़िंदगी में
अब भी ज़िंदा हूँ
क्योंकि
अभी भी
आज़ाद परिंदा हूँ
मैं
अभी भी
हारी नहीं हूँ
क्योंकि
मैं
उठूँगी हर बार
गिरूँगी जितनी बार.!!
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