फ़ुर्सत की एक शाम निकाल कर बैठो
तुम ज़िंदगी के ये काम निकाल कर बैठो.,
मशरूफ तो वक़्त खुद भी बहुत है यारों
जीना है तो थोड़ा वक़्त निकाल कर बैठो.,
पैसा रूतबा मुक़ाम कहां सुकून देता है
जरा बचपने को फिर से निकाल कर बैठो.,
बड़ी तो आजकल ये दिवारें ही बहुत हैं
तुम दिल से हर वहम निकाल कर बैठो
ज़िंदगी ख़ूबसूरत है ख़ूबसूरत ही रहेगी सदा
बस तुम अपनी मुस्कराहट निकाल कर बैठो.!
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