रहने को मकाँ तो है
घर नहीं है.,
देने को दुआ तो है
रोटी नहीं है.,
गरीब ज़िंदा तो है
ज़िंदगी नहीं है.,
लोग कारोबारी तो हैं
परोपकारी नहीं है.,
ज़माना मर्म में तो है
शर्म नहीं है.,
समाज ज्ञानी तो है
समझदारी नहीं है.,
दिल में धड़कनें तो हैं
दिलदारी नहीं है.,
ज़िंदगी ये ज़िंदगी भी क्या.?
जिसमें दिल नहीं
जिसमें दिल नहीं.!
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