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एक अरसे से

एक अरसे से खुलीं आँखों से मैंने उसे नहीं देखा..

कोई रात अैसी नहीं गुजरी जब मैंने उसे नहीं देखा.,


वो चेहरा, वो बातें और वो अदायगी उसकी..

मैंने इनके बाद कभी कोई और नहीं देखा.,


वो आकिल मेरी हर ग़ज़ल की पहचान बना रहा..

मैंने कभी जिसको अपनी महफ़िलों में नहीं देखा.,


वो कहता है मैं तेरे दिदार को तरसता बहुत हूँ..

मैंने जिसे अपने दिल के कभी बाहर नहीं देखा.,


बेजान बुत सा बना रहता हूँ उसके जाने के बाद मैं..

हर एक ने मुझे उसका बस उसने अपना नहीं देखा.!!


- शायर मलंग

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Shayar Malang

मस्त हूँ ... मलंग हूँ ... फक्कड भी ..,

ईश्किया हूँ ... दिवाना हूँ ... घुमक्कड़ भी ...

मेरे शब्द सिर्फ शब्द भर नहीं हैं ..!!

These Are Not Only Words . . .     These Are Feelings . . .

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